तानाजी मालुसरे कौन थे
तानाजी मालुसरे छत्रपती शिवाजी महाराज के घनिष्ठ मित्र और वीर निष्ठावान मराठा सरदार थे। वे छत्रपति शिवाजी महाराज के साथ मराठा साम्राज्य, हिंदवी स्वराज्य स्थापना के लिए सुभेदार की भूमिका निभाते थे । तानाजी छत्रपती शिवाजी महाराज के बचपन के मित्र थे वे बचपन मे एक साथ खेले थे वें १६७० ई. में सिंहगढ़ की लड़ाई में अपनी महती भूमिका के लिए प्रसिद्ध हैं। उस दिन सुभेदार तानाजी मालुसरेजी के पुत्र रायबा के विवाह की तैयारी हो रही थी, तानाजी मालुसरे जी छत्रपती शिवाजी महाराज जी को आमंत्रित करने पहुंचे तब उन्हें ज्ञात हुआ की कोंढाणा पर छत्रपती शिवाजी महाराज चढ़ाई करने वाले हैं, तब तानाजी मालुसरे जी ने कहा राजे मैं कोंढाणा पर आक्रमण करुंगा |अपने पुत्र रायबा के विवाह जैसे महत्वपूर्ण कार्य को महत्व न देते हुए उन्होने शिवाजी महाराज की इच्छा का मान रखते हुए कोंढाणा किला जीतना ज़्यादा जरुरी समझा। छत्रपती शिवाजी महाराज जी की सेना मे कई सरदार थे परंतु छत्ररपती शिवाजी महाराज जी ने विर तानाजी मालुसरे जी को कोढाना आक्ररमन के लिए चुना और कोंढणा “स्वराज्य” में शामिल हो गया लेकिन तानाजी मारे गए थे। छत्रपति शिवाजी ने जब यह समाचार सुनी तो वो बोल पड़े “गढ़ तो जीता, लेकिन मेरा “सिंह” नहीं रहा (मराठी – गढ़ आला पण सिंह गेला)।
तानाजीराव का जन्म १७वीं शताब्दी में महाराष्ट्र के कोंकण प्रान्त में महाड के पास ‘उमरथे’ में हुआ था। वे बचपन से छत्रपति शिवाजी के साथी थे। ताना और शिवा एक-दूसरे को बहुत अछी तरह से जानते थे। तानाजीराव, शिवाजी के साथ हर लड़ाई में शामिल होते थे। वे शिवाजी के साथ औरंगजेब से मिलने आगरा गये थे तब औरंगजेब ने शिवाजी और तानाजी को कपट से बंदी बना लिया था। तब शिवाजी और तानाजीराव ने एक योजना बनाई और मिठाई के पिटारे में छिपकर वहां से बाहर निकल गए। ऐसे ही एक बार शिवाजी महाराज की माताजी लाल महल से कोंडाना किले की ओर देख रहीं थीं। तब शिवाजी ने उनके मन की बात पूछी तो जिजाऊ माता ने कहा कि इस किले पर लगा हरा झण्डा हमारे मन को उद्विग्न कर रहा है। उसके दूसरे दिन शिवाजी महाराज ने अपने राजसभा में सभी सैनिकों को बुलाया और पूछा कि कोंडाना किला जीतने के लिए कौन जायेगा? किसी भी अन्य सरदार और किलेदार को यह कार्य कर पाने का साहस नहीं हुआ किन्तु तानाजी ने चुनौती स्वीकार की और बोले, “मैं जीतकर लाऊंगा कोंडाना किला”।