परिश्रम रंग लाती है
मैं Binay Kumar Dubey, शेखपुरा सदर में BMLE के पद पर कार्यरत हूँ। मैं एक बार STUDY के तहत शेखपुरा जिले के ही शहरी क्षेत्र में साक्षात्कार करने हेतु गया था परन्तु ये इतना आसान नहीं था क्यों की जिला अस्पताल से मुझे लाभार्थी का थोड़ा बहुत पता ही प्राप्त हो पाया था जैसे – माँ और पिता का नाम और जगह का नाम जहाँ वे रहते थे। उनका पूरा पता मौजूद नहीं था और न ही फोन नंबर था।
जगह के नाम पर सिर्फ xxx लिखा था जो की शेखपुरा जिले के एक बड़े शहरी क्षेत्र का नाम था जिसमे लाभार्थी के पते को ढूँढना बहुत ही मुश्किल होने वाला था। मैं सबसे पहले उस क्षेत्र के आंगनवाड़ी केंद्र पर गया जहाँ तीन आंगनवाड़ी केंद्र है। मेरे लिए सबसे बड़ी समस्या थी की मैं किस आंगनवाड़ी केंद्र पर जाऊं। अंततः मैंने उस केंद्र संख्या जाना उचित समझा जहाँ उसी समुदाय के लोग रहतें हों। जैसे बच्चे के पिता का नाम xxx था अतः वे xxx जाती से थे इसलिए मैं वहां गया। वहां 30 से 40 परिवार xxx जाती के लोग थे। मैंने आंगनवाड़ी सेविका से इस सम्बन्ध में पूछताछ की को पता चला की इस क्षेत्र में इस नाम से कोई भी नहीं है और न ही मेरे सर्वे रजिस्टर में है। तो मैंने सेविका से पूछा की “हो सकता है वो यहाँ की बेटी हो और बच्चे का पिता यहाँ का दामाद हो जिसे शायद आप परिचित न हो” ,तो सेविका ने कहा की यदि बेटी भी हुई तो मुझे पता चल ही जायेगा। इसके पश्चात मैंने सोचा की मैं खुद ही घर -घर जा कर पता करूँ और मैं उस समुदाय में जाकर अमुक व्यक्ति की तलाश करने लगा जहाँ भी पूछता निराशा ही हाथ लगती।कुछ लोग पूछते ” पूरा पता बताइये, क्या बात है और इतना पूछते ही घेर लेते “पर मैं विवश था क्यों की मेरे पास नाम , जगह के अलावा और कुछ भी नहीं था। घंटो मैं लोगों से मिलकर महिला के घर का पता पूछता रहा, फिर किसी ने सलाह दी की पास में ही एक जगह है जहाँ कुछ परिवार उसी समुदाय से हैं संभवतः वहां वे मिल सकतें है। मैंने सोचा चलो वहां भी हो आऊं शायद वो परिवार मुझे मिल ही जाये परन्तु काफी मसक्कत के बाद भी मुझे निराशा ही हाथ आई। मुझे उस परिवार की तलाश करते हुए डेढ़ से दो घंटे हो चले थे। चुकी मुझे और भी जगह साक्षात्कार करने जाना था सो मैं दूसरे स्थान को रवाना हो गया ये सोच कर की मैं पुनः अगले दिन आकर एक बार और तलाश करूँगा हार नहीं मानूंगा। उसी दिन शाम को जब मैं काम से घर लौट रहा था तो मैंने सोचा क्यों न एक बार पुनः सदर अस्पताल जाकर फिर से पता करूँ शायद् पूरा पता मिल जाये। मैं पुनः वहां गया और नए सिरे से खोजबीन कि परन्त कोई लाभ न मिलता देख मैं वहां के कछ सेवक से मिला तो उन्होंने बताया की “उनका पूरा पता तो नहीं मालूम पर वे फलां स्थान वाले आंगनवाड़ी क्षेत्र में हो सकते हैं”। मैंने सोचा कल जाकर पुनः एक बार फिर ढूंढता हूँ।और मैं अगले दिन समय पर बताये गए स्थान पर गया जो की पिछले दिनों ढूंढे जा रहे स्थान से काफी दूर था। मैं वहां के आंगनवाड़ी सेविका से संपर्क किया तथा लाभार्थी के पते के बारे में पूछा तो सेविका ने उस परिवार के उस क्षेत्र में नहीं होने की बात बताई गई जिसे सुनते ही मैं नाउम्मीद हो गया। फिर मुझे लगा की एक बार अँधेरे में तीर चलाते है और घर – घर जाकर पूछते हैं आख़िरकार दो चार जगह निराश होने के बाद आखिरकार गाँव की एक महिला ने पूछा की आप किसे ढूंढ रहे हैं तो मैंने बताया की नवम्बर (कार्तिक माह ) के 8 तारीख को सदर हॉस्पिटल में जन्मे एक नवजात बच्चे के पिता का घर ढूंढ रहा हूँ तो महिला ने संदेह भरे निगाहों से घूरते हुए पूछ “क्यों ढूंढ रहें हैं क्या बात है” मुझे उस महिला के हावभाव से लगा की वो मुझपर संदेह कर रही है , तो मैंने बताया की बच्चा जन्म से कमजोर था उसी को देखने और उसकी माता से बच्चे के स्वस्थ्य सम्बन्धी जानकारी लेनी थी। इतना सुनकर काफी सोच बिचार कर आपस में ही बात कर बोली ” वो तो लगता है की नेता जी की बेटिया है जेकर बचवा अस्पताल में खत्म हो गया ” मैंने भी आशंका में हाँ कहा और माँ और पिता का नाम की पुस्टि की तो , मालूम हुआ ये वही परिवार है जिसे मैं ढूंढ़ रहा था। मुझे एक समय ऐसा भी लगा था की मैं उस परिवार को नहीं ढूंढ पाउँगा मगर मेरी न हार मानने की आदत ने मुझे उस लाभार्थी के घर तक पहुंचा ही दिया। उस दिन मैंने एक सबक सीखी की कभी भी हौशला नहीं खोना चाहिए और निरंतर अथक प्रयाश की जीत होती है।write by ..
BINAY KR DUBEY
BMLE – SHEIKHPURA